शुक्रवार, 8 मार्च 2013

रविवार, 26 सितंबर 2010

मैं कूडादान हूँ ।

मैं कूडादान हूँ
मंत्री जी का हूँ इसलिये माफ हूँ
मुझ में दबी है सैकडों हसरतें
लाखों मुरादें, करोडों अपीलें
दूरी से तंग आये कई तबादले
विकास को गति देनेवाली योजनायें
वंचित हूँ उन पत्रो से जो भीख देते है
पर मंत्री जी कभी कभी पीक देते है ।

मैं कूडादान हूँ
दफ्तर का हूँ अर्धांग अफसर हूँ
भरा हूँ निवेदनो, प्रतिवेदनो ओर ज्ञापनो से
नामंजूर अनदेखी अर्जी ,खुदा की मर्जी
बगैर रिश्वत जो बनगई फर्जी
कार्बन में है साहब की खुदगर्जी
कुछ टेढी- मेढी आलपिने सीने मे गड रही है
दुर्भाग्य देश का, मेरी तो साहब से पट रही है ।

मैं कूडादान हूँ
दुकान का हूँ इसलिए सबका सवाल हूँ
भरा हूँ चमकदार रेपर पेपर ओर विज्ञापनों से
कुछ लिकेज है, कुछ ब्रेकेज है कार्ड जो स्क्रेच है
तंग हूँ वसूली की नित नई झूठी पर्चियों से
सेठ की नियत हरामी के बिल ओर बिल्टियों से
बाजार का प्रतिबिम्ब बनके रह गया हूँ
सौभाग्य मेरा केवल फायदे का सवाल हूँ |

मैं कूडादान हूँ
घर का हूँ इसलिये सबका निजी हूँ
सुबह-सुबह मेरी झोली मे थोडी सी धूल
कुछ तूली तिनके तनिक उतरे बाल
देर रात जगने वाले मालिक के सिकरेट की राख
अनबन कहासुनी मे टूटी काँच की दो चूडियाँ
शब्जी की पौष्टिकता के छिले छिलके
रात की एक आध रोटी थोडा सा शाक ,धन्य मेरा भाग!

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

शिशिर दूत फिर आया

पकवान बनाओ मीठे
खूब खाने का न्योता हूँ
हटादूँगा पीले पत्ते
लाल को जगह देता हूँ
धूप में बैठो चाहे
सूरज को अभी समझाता हूँ
लो मै आगया हूँ
कोहरा बनकर छागया हूँ

अंग न दिखाओ मुझे
मोटे कपडे दिलाता हूँ
चद्दर से काम न चले
तो रजाईयाँ भरवाता हूँ
डरो थोडा तो उससे
खिडकियाँ बन्द करवाता हूँ
लो मैं आगया हूँ
कोहरा बनकर छागया हूँ

सुनो ध्यान से बात मेरी
समझने मे करो न देरी
शीत के गीत गाते वो आ रही है
कंपन, ठिठुरन,दंतवादन ला रही है
नाक में नही, बस मुठ्ठियों में
बन्द कर बगल में दबा लेना
लो मै आ गया हूँ
कोहरा बनकर छागया हूँ

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

चाँद ! अब घर से निकले

नहाय धोय पूजा मनौती में दिन सारा निकले

सुख माँगें सम्पत्ति माँगें अन्न का दाना भी न निगले

करूँ रोज ही करवा चोथ फिर भी वो ना पिघले

साँझ हुई कि रोज चाँद अब घर से निकले


पी पी कर करे ताण्डव चले दिन दिन शिव से मिलने

हे ईश्वर! इस घर को संभालो चलते चलते सूखे मे फिसले

तीज त्यौंहार होली दीवाली क्या दिन दिन फाके मे निकले

छलनी लिये छत पर खड़ी अब तो पसलियों से दम ही निकले


मुड़ मुड़ कर चन्दा देखे आँसू भी ओस बन बिखरे

चिड़िया भी दुखड़ा रोये मेरा करुणा के सागर से सूरज है निकले

हे चौथ माता तेरी तूँ ही जाने मेरे तो पड़े रह गये चावल उबले

एक वर माँगू बस अब तो मेरा चाँद घर से न निकले

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

अब मैं कहा बच्चा हूँ

देखो ! पापा मैं आपकी छाती तक आता हूँ ।
बन्द में नहाकर,शर्ट दबाकर पेंट पहनता हूँ ।
आप दफ्तर जाते हैं तो स्कूल मैं भी जाता हूँ ।
चुनकर ताजा शब्जी ले आया, अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।

टोकने का एक बहाना ,सिर्फ बडों का एक ताना हूँ ।
आप तो वहीं खडे हो , नये युग को मैं ही जाना हूँ ।
मेरी चाहत रोक मुँह मोडकर, समझा दिमागखाना हूँ ।
चलाने देकर देखो! कमप्युटर ,अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।

आप तो रूक रूक कर चलते है, मैं तो नहीं थकता हूँ ।
करता जितनी बुद्धि मेरी , आपसे तो दिशा माँगता हूँ ।
अंगुली पकड कर चलाया, तो लो अपना कंधा सौंपता हूँ ।
श्रद्धा, संस्कार,आदर्शो की नींव मेरी, अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।

रविवार, 13 सितंबर 2009

नोटदेवमहिम्नस्त्रोत्रम
हे! नीलवर्ण श्री नोटदेव! तुमको मेरा शत शत प्रणाम !

चमत्कार इस कलियुग में, बस है तो एक तुम्हारा है।
है असहाय शरण आपके आगे, क्या भगवान बेचारा है ॥1॥

भगवान गुप्त, तुम प्रकट सदा, वो आसमान तुम धरती पर ।
दो हि घडि उनकी पूजा, पर तुम्हे पूजते आठो प्रहर ॥2॥

राज कचहरी काम पडे, भगवान दूर रह जाते है ।
दुखियारे भक्तो के काम आप ही आते है ॥3॥

अछुत अधर्मी छूले तो, भगवन भ्रष्ट हो जाते है ।
पर हरिजन के हाथो से, ब्राह्मण भी ले गले लगाते है

अगर दया तुम्हारी हो , असंभव भी संभव बन जाते ।
फांसी के फन्दे कटते , जेलो के ताले झड जाते ॥5॥

आप तिजोरी मे आते ही, पैरो की चाल बदल जाती ।
गालो पर खुशहाली छाजाती, घुटनो तक तोंद बढ आती ॥6॥

तुम लुले- लंगडे मतिमंद बूढो की शादी रचवाते ।
निर्धन बेचारे रूपवान रण्डवे के रण्डवे रह जाते ॥7॥

इन चुनाव व यद्ध की बहसों मे भिडंत आप ही करवाते ।
सच्चो की जब्त जमानत होती, लुच्चे एम.एल.ए. बन जाते ॥8॥

पांच वर्षो के भीतर- भीतर भव्य भवन खडे हो जाते ।
घर के आंगन में उनके धनके स्रोत उमड पड्ते ॥9॥

ईमानदारों पर आप दया बहुत ही कम करते हो ।
लुच्चे तिकडमबाजो की तुम जेबे शिघ्र ही भरते हो ॥10॥

पूनम ,दूज, सोम, शुक्र को लोग पवित्र बताते है ।
पर पहली तारिख पसन्द मुझे जब आप हाथमे आते है ॥11॥

आप बिना वैज्ञानिक,शिल्पी, दर-दर की ठोकर खाते है ।
घोडो को घास नसीब नहीं , गधे केसर पिस्ता खाते है॥12॥

जब दृष्टि आपकी होती दुनिया की सोच बदल जाती ।
पथभ्रष्ट प्रजा को करती, ये प्रतिमायें नेता बन जाती ॥13॥

ये दुनियादारी के रिश्ते सारे के सारे कच्चे है ।
है संकट उपजा नोटदेव आप सम्बन्धी सच्चे है ॥14॥

संदुक भरा हो नोटो से, हम सच्चे संत कहलाते है ।
चाचा,ताऊ,बहिन, भानजे दुगुना प्रेम दिखाते है ॥15॥

आप किनारा कर ले तो संसार किनारा कर लेता ।
बातों का ढंग बदल जाता ,रिश्तो का रंग बदल जाता ॥16॥

आप विहीन उधार मांगने अपने ही घर जावे कहि ।
तो चाचा चाची को बतलायेगें, ताऊ करेगा बात नहीं ॥17॥

यदि भुवा मदद की बात करे तो फुफा फट खुल जाते ।
सालाजी चाय पिलाकर आगे की तारिख बताते है ॥18॥

दुखि सुदामा मदद मांगने किसी क़ष्ण घर जाता है ।
कलयुगी क़ष्ण तो घर बैठा होम मिनीष्टर नट जाते ॥19॥

ईश्वर की नवदा भक्ति पर नोट भक्त ले पंथ अनेक ।
पूरी रामायण बन जाये अगर गिनाते एक एक ॥20॥

महाभक्त ब्लेक धंधा, या सट्टाखोरी करते है ।
कालेबाजारी भक्त आपके दो- दो पोथी रखते है ॥21॥

सरकारी सट्टो की भक्ति तो कुर्सी पर फलती है ।
पत्र पुण्य गुप्त गबन की एकांत साधना चलती है ॥22 ॥

नोट भक्ति का वैसे तो दुनिया मे नहि कसाला है ।
पर जेब कतरने वाला भैया सब सट्टो से आला है ॥23॥

भक्त किरोडीदासों का धरती पर स्वर्ग दिया सबने ।
घुडशाला एयर कंडीशन उनके घरमे देखी हमने ॥24॥

इनकी कुतिया बीमार पडे डाक्टर दौडे आते है ।
उधर प्रेमचन्द निराला जैसे बिना उपचार मर जाते है ॥25॥

प्रत्यक्ष प्रभाव आपका ये कार्यालय बतलाते है ।
जगह-जगह सरकारी पंण्डे कर्म काण्ड करवाते है ॥26॥

नोटदेव आप मे वो जादू है बगुले हंस बन जाते ।
मानव रक्त सने हाथ भी राष्ट्र्ध्व्ज फहराते ॥27॥

मेरे इस भूखे भारत में सिर्फ तुम्हारी चलती है ।
बंगलो को बक्से दीवाने होली कुटिया की जलती है ॥28॥

तुम महानगरो की झिलमिल हो, सेठो के मुह की लाली |
तुम बडी डकारें अफसर की, तुम ही सत्ता मतवाली ॥29॥


एम.पी. की झोली मे तुम हो, मंत्रि तो खास पुजारी है ।
थोडे मे सब कुछ कह दू तो सरकार तुम्हारी है ॥30॥

विधानसभा की सीट होतुम लोकसभा का दरवाजा ।
तुम्हे एक स्वर मे रखते सब क्या मंत्रि क्या महाराजा ॥31॥

भक्त आपके दर्शन खातिर प्रपंच रचवाते है ।
मद्रास, कलकत्ता, बम्बई, युरोप अफ्रिका जाते है ॥32॥

कलियुग मे असली देव तुम्ही हो तुम्ही खुदा तुम्ही राम।
चाहे जितने संदूक भरे हों पडते रहते सदा कम ॥33।

तुम से भक्षक ही रक्षक बन जाते भीडे झुक-झुक करे सलाम ।
साहित्य, कला, दर्शन इनका आप बिना नही जीवन आयाम ॥34॥

काशी द्वारका चारधाम से भी ऊचा रिजर्व बैक का धाम ।
जो अटल विश्वास आप में सबका ,अब कौन रटेगा राम-राम ॥35॥

हे नीलवर्ण श्री नोट्देवता ! आपको मेरा शत-शत प्रणाम ॥
आर्तनाद !
धरणी यौवन की सुगन्ध से भरा हवा का झौंका
वो बारिश की बूंद
दिल में सिहरती तरंगे
धुलती प्रकृति, खिलती कलियाँ
बोली कोयल
भीगे बच्चे
फूटी घमोरी
कम्पित हुआ रोम-रोम कि....
तडप से बिजली गिरी कुछ दूर
एक आर्तनाद सुना गई
परनाले के नीर में
एक नीड बह गया
टीटहरी का वो बिलखना
कहीं पहाड से टकरा के रह गया
डर के बच्ची भी माँ के आँचल से मुँह
ढक कर सो गई
न जाने उस गहन अंधेरे व
भावप्रवाह में मेरी लेखनी भी कहिं खो गई............।