मैं कूडादान हूँ
मंत्री जी का हूँ इसलिये माफ हूँ
मुझ में दबी है सैकडों हसरतें
लाखों मुरादें, करोडों अपीलें
दूरी से तंग आये कई तबादले
विकास को गति देनेवाली योजनायें
वंचित हूँ उन पत्रो से जो भीख देते है
पर मंत्री जी कभी कभी पीक देते है ।
मैं कूडादान हूँ
दफ्तर का हूँ अर्धांग अफसर हूँ
भरा हूँ निवेदनो, प्रतिवेदनो ओर ज्ञापनो से
नामंजूर अनदेखी अर्जी ,खुदा की मर्जी
बगैर रिश्वत जो बनगई फर्जी
कार्बन में है साहब की खुदगर्जी
कुछ टेढी- मेढी आलपिने सीने मे गड रही है
दुर्भाग्य देश का, मेरी तो साहब से पट रही है ।
मैं कूडादान हूँ
दुकान का हूँ इसलिए सबका सवाल हूँ
भरा हूँ चमकदार रेपर पेपर ओर विज्ञापनों से
कुछ लिकेज है, कुछ ब्रेकेज है कार्ड जो स्क्रेच है
तंग हूँ वसूली की नित नई झूठी पर्चियों से
सेठ की नियत हरामी के बिल ओर बिल्टियों से
बाजार का प्रतिबिम्ब बनके रह गया हूँ
सौभाग्य मेरा केवल फायदे का सवाल हूँ |
मैं कूडादान हूँ
घर का हूँ इसलिये सबका निजी हूँ
सुबह-सुबह मेरी झोली मे थोडी सी धूल
कुछ तूली तिनके तनिक उतरे बाल
देर रात जगने वाले मालिक के सिकरेट की राख
अनबन कहासुनी मे टूटी काँच की दो चूडियाँ
शब्जी की पौष्टिकता के छिले छिलके
रात की एक आध रोटी थोडा सा शाक ,धन्य मेरा भाग!
रविवार, 26 सितंबर 2010
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bahut sundar rachna har pankti apne aap men puri tarah se khari hai
जवाब देंहटाएंराजा भाई , बहुत दिनों के बाद आपकी यह रचना ! एक "वाह" से मेरा गुजर नहीं चलेगा ! अपने समय की विसंगतियों का ऐसा सूक्ष्म अवलोकन और चित्रण ! वाह! एक-एक पंक्ति भीतर तक उतर जाती है.. भाई जी, गलती हो गई जो इसे "रचना" कह गया.. यह तो २२ कैरट "कविता" है ..जितनी बार पढ़ी जायेगी अर्थों की नयी नयी छटाएं बिखरती जायेंगी.. वाह!
जवाब देंहटाएं"मैं कूडादान हूँ
घर का हूँ इसलिये सबका निजी हूँ
सुबह-सुबह मेरी झोली मे थोडी सी धूल
कुछ तूली तिनके तनिक उतरे बाल
देर रात जगने वाले मालिक के सिकरेट की राख
अनबन कहासुनी मे टूटी काँच की दो चूडियाँ
शब्जी की पौष्टिकता के छिले छिलके
रात की एक आध रोटी थोडा सा शाक ,धन्य मेरा भाग!"
वैसे मंत्री जी की कार के शीशे, नौकर शाह के दफ्तर , सेठ की दूकान और हर घर के ड्राइंग रूम में यह कविता चस्पां होनी चाहिए
आपकी वह "यूं ही नहीं था तप्त तवे पर पसर जाना" तो अविस्मरणीय २४ कैरट कृति है..