रविवार, 13 सितंबर 2009

नोटदेवमहिम्नस्त्रोत्रम
हे! नीलवर्ण श्री नोटदेव! तुमको मेरा शत शत प्रणाम !

चमत्कार इस कलियुग में, बस है तो एक तुम्हारा है।
है असहाय शरण आपके आगे, क्या भगवान बेचारा है ॥1॥

भगवान गुप्त, तुम प्रकट सदा, वो आसमान तुम धरती पर ।
दो हि घडि उनकी पूजा, पर तुम्हे पूजते आठो प्रहर ॥2॥

राज कचहरी काम पडे, भगवान दूर रह जाते है ।
दुखियारे भक्तो के काम आप ही आते है ॥3॥

अछुत अधर्मी छूले तो, भगवन भ्रष्ट हो जाते है ।
पर हरिजन के हाथो से, ब्राह्मण भी ले गले लगाते है

अगर दया तुम्हारी हो , असंभव भी संभव बन जाते ।
फांसी के फन्दे कटते , जेलो के ताले झड जाते ॥5॥

आप तिजोरी मे आते ही, पैरो की चाल बदल जाती ।
गालो पर खुशहाली छाजाती, घुटनो तक तोंद बढ आती ॥6॥

तुम लुले- लंगडे मतिमंद बूढो की शादी रचवाते ।
निर्धन बेचारे रूपवान रण्डवे के रण्डवे रह जाते ॥7॥

इन चुनाव व यद्ध की बहसों मे भिडंत आप ही करवाते ।
सच्चो की जब्त जमानत होती, लुच्चे एम.एल.ए. बन जाते ॥8॥

पांच वर्षो के भीतर- भीतर भव्य भवन खडे हो जाते ।
घर के आंगन में उनके धनके स्रोत उमड पड्ते ॥9॥

ईमानदारों पर आप दया बहुत ही कम करते हो ।
लुच्चे तिकडमबाजो की तुम जेबे शिघ्र ही भरते हो ॥10॥

पूनम ,दूज, सोम, शुक्र को लोग पवित्र बताते है ।
पर पहली तारिख पसन्द मुझे जब आप हाथमे आते है ॥11॥

आप बिना वैज्ञानिक,शिल्पी, दर-दर की ठोकर खाते है ।
घोडो को घास नसीब नहीं , गधे केसर पिस्ता खाते है॥12॥

जब दृष्टि आपकी होती दुनिया की सोच बदल जाती ।
पथभ्रष्ट प्रजा को करती, ये प्रतिमायें नेता बन जाती ॥13॥

ये दुनियादारी के रिश्ते सारे के सारे कच्चे है ।
है संकट उपजा नोटदेव आप सम्बन्धी सच्चे है ॥14॥

संदुक भरा हो नोटो से, हम सच्चे संत कहलाते है ।
चाचा,ताऊ,बहिन, भानजे दुगुना प्रेम दिखाते है ॥15॥

आप किनारा कर ले तो संसार किनारा कर लेता ।
बातों का ढंग बदल जाता ,रिश्तो का रंग बदल जाता ॥16॥

आप विहीन उधार मांगने अपने ही घर जावे कहि ।
तो चाचा चाची को बतलायेगें, ताऊ करेगा बात नहीं ॥17॥

यदि भुवा मदद की बात करे तो फुफा फट खुल जाते ।
सालाजी चाय पिलाकर आगे की तारिख बताते है ॥18॥

दुखि सुदामा मदद मांगने किसी क़ष्ण घर जाता है ।
कलयुगी क़ष्ण तो घर बैठा होम मिनीष्टर नट जाते ॥19॥

ईश्वर की नवदा भक्ति पर नोट भक्त ले पंथ अनेक ।
पूरी रामायण बन जाये अगर गिनाते एक एक ॥20॥

महाभक्त ब्लेक धंधा, या सट्टाखोरी करते है ।
कालेबाजारी भक्त आपके दो- दो पोथी रखते है ॥21॥

सरकारी सट्टो की भक्ति तो कुर्सी पर फलती है ।
पत्र पुण्य गुप्त गबन की एकांत साधना चलती है ॥22 ॥

नोट भक्ति का वैसे तो दुनिया मे नहि कसाला है ।
पर जेब कतरने वाला भैया सब सट्टो से आला है ॥23॥

भक्त किरोडीदासों का धरती पर स्वर्ग दिया सबने ।
घुडशाला एयर कंडीशन उनके घरमे देखी हमने ॥24॥

इनकी कुतिया बीमार पडे डाक्टर दौडे आते है ।
उधर प्रेमचन्द निराला जैसे बिना उपचार मर जाते है ॥25॥

प्रत्यक्ष प्रभाव आपका ये कार्यालय बतलाते है ।
जगह-जगह सरकारी पंण्डे कर्म काण्ड करवाते है ॥26॥

नोटदेव आप मे वो जादू है बगुले हंस बन जाते ।
मानव रक्त सने हाथ भी राष्ट्र्ध्व्ज फहराते ॥27॥

मेरे इस भूखे भारत में सिर्फ तुम्हारी चलती है ।
बंगलो को बक्से दीवाने होली कुटिया की जलती है ॥28॥

तुम महानगरो की झिलमिल हो, सेठो के मुह की लाली |
तुम बडी डकारें अफसर की, तुम ही सत्ता मतवाली ॥29॥


एम.पी. की झोली मे तुम हो, मंत्रि तो खास पुजारी है ।
थोडे मे सब कुछ कह दू तो सरकार तुम्हारी है ॥30॥

विधानसभा की सीट होतुम लोकसभा का दरवाजा ।
तुम्हे एक स्वर मे रखते सब क्या मंत्रि क्या महाराजा ॥31॥

भक्त आपके दर्शन खातिर प्रपंच रचवाते है ।
मद्रास, कलकत्ता, बम्बई, युरोप अफ्रिका जाते है ॥32॥

कलियुग मे असली देव तुम्ही हो तुम्ही खुदा तुम्ही राम।
चाहे जितने संदूक भरे हों पडते रहते सदा कम ॥33।

तुम से भक्षक ही रक्षक बन जाते भीडे झुक-झुक करे सलाम ।
साहित्य, कला, दर्शन इनका आप बिना नही जीवन आयाम ॥34॥

काशी द्वारका चारधाम से भी ऊचा रिजर्व बैक का धाम ।
जो अटल विश्वास आप में सबका ,अब कौन रटेगा राम-राम ॥35॥

हे नीलवर्ण श्री नोट्देवता ! आपको मेरा शत-शत प्रणाम ॥

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर. जादा नहीं कह सकूंगा चूँकि रचना मेरे कहने से कहीं जादा उम्दा! जारी रहने.
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    Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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