अब मैं कहा बच्चा हूँ
देखो ! पापा मैं आपकी छाती तक आता हूँ ।
बन्द में नहाकर,शर्ट दबाकर पेंट पहनता हूँ ।
आप दफ्तर जाते हैं तो स्कूल मैं भी जाता हूँ ।
चुनकर ताजा शब्जी ले आया, अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।
टोकने का एक बहाना ,सिर्फ बडों का एक ताना हूँ ।
आप तो वहीं खडे हो , नये युग को मैं ही जाना हूँ ।
मेरी चाहत रोक मुँह मोडकर, समझा दिमागखाना हूँ ।
चलाने देकर देखो! कमप्युटर ,अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।
आप तो रूक रूक कर चलते है, मैं तो नहीं थकता हूँ ।
करता जितनी बुद्धि मेरी , आपसे तो दिशा माँगता हूँ ।
अंगुली पकड कर चलाया, तो लो अपना कंधा सौंपता हूँ ।
श्रद्धा, संस्कार,आदर्शो की नींव मेरी, अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
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आप तो रूक रूक कर चलते है, मैं तो नहीं थकता हूँ ।
जवाब देंहटाएंकरता जितनी बुद्धि मेरी , आपसे तो दिशा माँगता हूँ ।
अंगुली पकड कर चलाया, तो लो अपना कंधा सौंपता हूँ ।
श्रद्धा, संस्कार,आदर्शो की नींव मेरी, अब मैं कहाँ बच्चा हूँ ।
Bachon ko prerit karti sunder rachna ...!!
"अब मैं कहाँ बच्चा हूँ" रचना सोचने पर विवश करती है. बहुत ही बेहतर.
जवाब देंहटाएंजारी रहें.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
kavita kafi stariya hai sundar lagi
जवाब देंहटाएंraja bhai ji
जवाब देंहटाएंnamaskar .
deri se aane ke liye maafi ..
aapki ye kavita jeevan ke har rang ko sacche dhang se bayan karti hai .....
aapne bahut hi anuthe tarah se apni baat ko shbdo me bayaan kiya hai .
meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
टिप्पणी भेज कर जो उत्साह आपने बढाया है उसके लिये सभी का शुक्रिया
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