खण्डित दिल का आश्रय
ध्वस्त जिसको कर दिया है, वक्त के तूफान ने
क्यों उसीका आज तुम, आधार पाना चाहते हो ?
खोगया मझधार में खुद, जो किनारा छोडकर
क्यों उसे माँझी समझ, उस पार जाना चाहते हो ?
यह तुम्हारी भूल है या कि है उन्माद तेरा
जो उस दिवास्वप्न को, साकार पाना चाहते हो ?
व्याधियाँ जिसकी है रातें और व्यथा जिसका सवेरा
क्यों उसी के होठ पर, मधुहास लाना चाहते हो ?
जिन्दगी जिसकी स्वयं टूटी हुई सीतार सी
क्यों उसी सीतार पर तुम स्वर सजाना चाहते हो ?
जो बहारों के मृदुल चरणों से रौंदा गया हो
क्यों उसी की बाँह का मनुहार पाना चाहते हो ?
जल उठेगा बाग भी जिसकी झुलती पाँख से
क्यों एसे फूलको उपवन में लगाना चाहते हो ?
खोगये विश्वास जिसके धूल में एक बूँद जैसे
क्यों उसी का आज तुम विश्वास पाना चाहते हो ?
उजडा हुआ है जो हृदय विधवा की सूंनी माँग सा
क्यों उसी टूटे हृदय का प्यार पाना चाहते हो ?
प्यार ने जिसको छला, मधुमास का आभास देकर
रह गया स्तब्ध सा अब सिर्फ नि:श्वास होकर
दग्ध उर जिसका हुआ है, चिर विरह की आग से
आज फिर उस आग में क्यों घृत चढाना चाहते हो ?
रविवार, 13 सितंबर 2009
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RAJABHAI.. TAWE WALI CHAMAK AUR KAHIN NAHIN DIKH RAHI...US KAVITA KO MAIN DSIYON BAR PAD GYA HOON... APNE BHEETAR KE SAMPADAK KO BHI JGAYEIN..
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