मेरे सब पिताओं को प्रनाम !
मेरे पिता (जनक) प्रति..........
जो धरती पर बीज बन गला
जिसकी छाँव तले मैं पला
अंगुली उनकि थी जिसे पकड चला
आज क्यूं भूलुँ उन्हे भला
मेरे पिता (दत्तक) प्रति............
तपती रेत के टीलों पर, चढना उनका
कंधे पर बैठा, भाव न जाना मनका
खुशी के लिये मेरी, छलते जाना उनका
थे तो थाह नहि ढूँढूं क्यूं डूबते हुवे तिनका
मेरे पिता (धर्मपिता) प्रति........
दे कर अपनी दुहिता चाहा जिसने हित मेरा
गर्व किया झूठा तनकर, बाँधे सिरपर सेहरा
पिता बना, खाकर उनकी पोषित लतिका से फेरा
ऋण न चूके, जीवन भर यदि बना रहूं चेरा
मेरे पिता (परमपिता) प्रति.........
तेरे बिना अवलम्ब कहाँ, जो सब दुख हरे मेरे
मिट्टी का खिलोना हूँ, पर डोर हाथ में तेरे
माने ना सत्ता जो तेरी, मिटे रावण से घनेरे
पुत्र सा तूं पाले मुझे ,अहसान मुझपर बहुतेरे
राष्ट्रपिता के साथ उन सभी पिता तुल्यों को प्रणाम .........
रविवार, 13 सितंबर 2009
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krtigyta ka yah durlabh bhav aapko doosron se kitna alag aur uncha kar deta hai kya aapko maloom hai raja bhi .. mera man to aapko prnam karne ko karta hai
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